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40 दिन की अनोखी होली! भगवान रघुनाथ खुद देते हैं वैरागियों को विदाई? जानिए कुल्लू की खास परंपरा

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कुल्लू की 40 दिवसीय होली का समापन आज रघुनाथ मंदिर में केसर डोल परंपरा के साथ हुआ. वैरागी समुदाय ने पारंपरिक होली गीत गाए और भगवान रघुनाथ को गुलाल अर्पित किया. यह अनूठी परंपरा भगवान रघुनाथ के कुल्लू आगमन से जुड़…और पढ़ें

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केसर

केसर डोल के दौरान झूले पर विराजमान भगवान रघुनाथ

हाइलाइट्स

  • कुल्लू की 40 दिवसीय होली का समापन रघुनाथ मंदिर में केसर डोल परंपरा के साथ हुआ.
  • वैरागी समुदाय ने पारंपरिक होली गीत गाए और भगवान रघुनाथ को गुलाल अर्पित किया.
  • यह अनूठी परंपरा भगवान रघुनाथ के कुल्लू आगमन से जुड़ी है.

कुल्लू: कुल्लू की होली बाकी देश से बिल्कुल अलग है. जहां बाकी जगह होली एक-दो दिन में खत्म हो जाती है, वहीं कुल्लू में यह त्यौहार पूरे 40 दिनों तक चलता है. बसंत पंचमी से शुरू होकर यह अनोखी होली आज रघुनाथ मंदिर में संपन्न हुई. समापन के दिन केसर डोल की परंपरा निभाई जाती है, जिसमें भगवान रघुनाथ के दरबार में वैरागी समुदाय पारंपरिक होली गीत गाकर विदाई लेते हैं.

क्या है केसर डोल परंपरा?
कुल्लू में होली की शुरुआत वैरागी समुदाय करता है, जो बसंत पंचमी के दिन से ही होली खेलना शुरू कर देते हैं. जब देशभर में होलिका दहन के साथ होली समाप्त होती है, तब कुल्लू में केसर डोल के साथ इस महोत्सव का समापन होता है. इस दिन भगवान रघुनाथ मंदिर के प्रांगण में झूले पर विराजमान होते हैं और वैरागी समुदाय उनके समक्ष अंतिम होली गायन करता है.

इस गायन में पारंपरिक व्रज और अवध की होलियां गाई जाती हैं, जिन्हें सिर्फ इन 40 दिनों के दौरान ही गाया जाता है. इसके बाद भगवान रघुनाथ के साथ गुलाल खेला जाता है और फिर वैरागियों को भगवान की ओर से फगुआ (दक्षिणा और प्रसाद) देकर विदा किया जाता है. इसे भगवान द्वारा वैरागियों को आशीर्वाद देने की परंपरा माना जाता है.

भगवान रघुनाथ के साथ आए थे वैरागी
कुल्लू की यह विशेष होली भगवान रघुनाथ के आदेश पर पहले ही खेली जाती है. मान्यता है कि जब भगवान रघुनाथ कुल्लू आए थे, तब मथुरा-वृंदावन के वैरागी भी उनके साथ आए थे. तभी से यह परंपरा शुरू हुई और आज भी उसी श्रद्धा और भक्ति के साथ निभाई जाती है.

वैरागी समुदाय यहां अवध के पारंपरिक होली गीतों के साथ होली मनाते हैं, जिससे कुल्लू की यह होली एक अनूठी परंपरा बन गई है. केसर डोल के साथ जब वैरागी विदा लेते हैं, तब 40 दिनों के इस लंबे उत्सव का समापन होता है और अगले साल फिर से इसी भक्ति और उल्लास के साथ इसे मनाने का संकल्प लिया जाता है.

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40 दिन की अनोखी होली! भगवान रघुनाथ खुद देते हैं वैरागियों को विदाई?

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