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शिमला14 घंटे पहले
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महात्मा गांधी की शिमला यात्राओं की फोटो
गुजरात के पोरबंदर में जन्मे महात्मा गांधी का हिमाचल की राजधानी शिमला से गहरा नाता रहा। उन्होंने आजादी से पहले शिमला की एक दो नहीं बल्कि 10 यात्राएं की। राष्ट्रपिता की यात्राओं का मकसद तत्कालीन वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो से मुलाकात करना था।
बापू की जयंती पर उनकी शिमला यात्राओं, हत्या के ट्रायल और डगशाई जेल में काटी गई दो रातों से जुड़ी रोचक जानकारी पढ़िए…
शिमला के मिंटो कोर्ट में गोडसे को सुनाई फांसी की सजा
महात्मा गांधी की हत्या का ट्रायल शिमला के मिंटो कोर्ट में चला। तत्कालीन समय में मिंटो कोर्ट पीटरहॉफ के अधीन था, जहां अब हिमाचल सरकार का राज्य अतिथि गृह पीटरहॉफ चल रहा है। इसी मिंटो कोर्ट में नाथू राम गोडसे को बतौर आरोपी पेश किया गया। 21 जून 1949 को गोडसे को फांसी की सजा सुनाई गई। इसके बाद अंबाला जेल में गोडसे को फांसी दी गई।

तब पंजाब हाईकोर्ट भी इसी भवन में था। हालांकि अब यह मिंटो कोर्ट भवन जलकर राख हो गया है। इसी के साथ नाथू राम गोडसे से जुड़ा इतिहास भी खत्म हो गया। साल 1968 में मिंटो कोर्ट को दीपक प्रोजेक्ट के सुपुर्द किया गया, तब से यहां इनका कार्यालय चल रहा है।
बापू की कर्म स्थली रहा शिमला
बेशक, आजादी के बाद महात्मा गांधी शिमला नहीं आ पाए। मगर आजादी से पहले शिमला बापू की कर्म स्थली रही। शिमला में उनकी अनेक स्मृतियां मौजूद हैं। राष्ट्रपति की अधिकांश शिमला यात्राएं ब्रिटिश सत्ता के साथ चर्चा से जुड़ी थी।
बापू की शिमला यात्राओं का विवरण
महात्मा गांधी की पहली शिमला यात्रा 12 मई 1921 में हुई। बापू पहली बार मदन मोहन मालवीय और लाला लाजपतराय के साथ तत्कालीन लॉर्ड रीडिंग से मिलने शिमला आए थे। उस यात्रा में वे शिमला के चक्कर में शांति कुटीर में ठहरे थे। तब ये मकान होशियारपुर के साधु आश्रम की संपत्ति थी।
महात्मा गांधी दूसरी, तीसरी व चौथी शिमला यात्रा पर 1931 में आए। 1939 की पहली यात्रा में वे जाखू में फरग्रोव इमारत में ठहरे। इस समय ये मच्छी वाली कोठी के नाम से विख्यात है। अपनी अगली यात्रा में बापू क्लीव लैंड में ठहरे। ये विधानसभा के समीप एक इमारत थी। चौथी यात्रा अगस्त 1931 में की।

इसके बाद सितंबर 1939 में दो बार और 1940 में एक बार शिमला आए। महात्मा गांधी अपनी अंतिम शिमला यात्रा के दौरान 1946 में आए। ये यात्रा दो हफ्ते की थी। इस दौरान वे समरहिल में चैडविक इमारत में ठहरे। गांधी जी पैशन: द लाइफ एंड लीगेसी ऑफ महात्मा गांधी स्टेनले वोलपोर्ट ने भी इन यात्राओं की पुष्टि की है।
इन दो यात्राओं का नहीं जिक्र
शिमला के ऐतिहासिक रिज पर महात्मा गांधी की प्रतिमा लगी है। इसी प्रतिमा के पीछे वाले हिस्से में बापू की शिमला यात्राओं का विवरण है। विख्यात इतिहासकार व पूर्व IAS अधिकारी श्रीनिवास जोशी के अनुसार यहां बापू की वर्ष 1939 की दो यात्राओं का ब्योरा नहीं है, जबकि वर्ष 1939 में महात्मा गांधी दो बार 4 व 26 सितंबर को शिमला आए थे।
जिस जेल का नाम सुनकर रूह कांपती थी, वहां रुके बापू
देश में जब अंग्रेजों का राज था, तब 2 ऐसी जेल थीं, जिनका नाम सुनकर कैदियों की रूह कांप जाती थी। इनमें एक अंडमान-निकोबार और दूसरी डगशाई जेल है। डगशाई जेल हिमाचल के सोलन जिले में बनी है। जिसमें गर्म सलाखों से दागकर कैदियों के नंबर लिखे जाते थे। इसी डगशाई जेल में महात्मा गांधी भी आए।

शिमला से पहले डगशाई आए थे बापू
शिमला से पहले महात्मा गांधी सोलन की डगशाई जेल 1920 में आए थे। दरअसल, प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान ब्रिटिश सेना ने बड़ी संख्या में आयरिश सैनिकों को बंदी बनाया था। इनमें से कइयों को हिमाचल लाकर डगशाई जेल में बंद करके कठोर यातनाएं दी गईं। आयरिश सैनिकों ने जेल की प्रताड़ना सहते हुए यहां अनशन भी किया था। यह बात जब जेल से बाहर निकली तो 1 अगस्त 1920 को महात्मा गांधी उन्हीं सैनिकों से मिलने डगशाई आए। इस दौरान वह 2 दिन तक इसी जेल में रुके।
बताते हैं कि गांधी जी, आयरिश नेता इयामन डे वेलेरा के दोस्त और प्रशंसक भी थे। यही कारण था कि हिंदुस्तान की जेल में बंद होकर भी अपनी आजादी की जंग लड़ रहे आयरिश सैनिकों से मिलने बापू डगशाई पहुंचे। उस समय बापू को जिस कोठरी में ठहराया गया था, उसके बाहर महात्मा गांधी की तस्वीर लगी है। इसी जेल का आखिरी कैदी महात्मा गांधी का हत्यारा नाथू राम गोडसे था।