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कुल्लू की अनोखी परंपरा, वैरागी समुदाय के बिना अधूरी है होली! जानें इसकी पौराणिक वजह

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Holi In Kullu: कुल्लू में होली का उत्सव वैरागी समुदाय की पारंपरिक परंपराओं से जुड़ा है. द्वादशी के दिन भगवान रघुनाथ विशेष दर्शन देते हैं और भक्त पारंपरिक होली गीत गाते हैं. वैरागी समुदाय वृज और अवध की होली गाने…और पढ़ें

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रघुनाथ

रघुनाथ मंदिर में होली गायन करते वैरागी

हाइलाइट्स

  • भगवान रघुनाथ द्वादशी पर कमलासन पर विराजमान होते हैं.
  • वैरागी समुदाय पारंपरिक होली गीत गाता है.
  • गुरु बाबा फौहरी महाराज की तपोस्थली पर आशीर्वाद लिया जाता है.

कुल्लू. कुल्लू जिले में मनाई जाने वाली होली की अपनी अलग परंपरा और विशेष महत्व है. यहां होलाष्टक के दौरान वैरागी समुदाय भगवान रघुनाथ के दरबार में हाजिरी लगाते हैं और होली के गीत गाते हैं. इनमें द्वादशी का दिन सबसे खास होता है, जब भगवान रघुनाथ वैरागियों को विशेष दर्शन देते हैं.

द्वादशी के दिन विशेष दर्शन
भगवान रघुनाथ के छड़ीबरदार महेश्वर सिंह ने बताया कि द्वादशी के दिन भगवान रघुनाथ अपने मंदिर में कमलासन पर विराजमान होते हैं और वैरागी समुदाय के लोगों को विशेष दर्शन देते हैं. इस दौरान भगवान होली के पारंपरिक गीत सुनते हैं. कुल्लू में अगले दिन से होली का उत्सव शुरू होता है और पूरे दो दिन तक इसे बड़े धूमधाम से मनाया जाता है.

पारंपरिक होली गीतों की प्रस्तुति
वैरागी समुदाय होलाष्टक के दौरान प्रतिदिन होली के पारंपरिक गीत गाता है. लेकिन द्वादशी के दिन विशेष रूप से ऐसे गीत गाए जाते हैं, जिनमें भगवान रघुनाथ के जनकपुरी यानी मां सीता के घर पहुंचने का वर्णन होता है. इस दिन भक्तों को भगवान रघुनाथ के विशेष दर्शन का भी सौभाग्य मिलता है.

वैरागी समुदाय की भूमिका
वैरागी समुदाय से संबंध रखने वाले रामेश्वर महंत ने बताया कि कुल्लू की होली में वैरागी समुदाय का विशेष योगदान रहता है. यहां होलाष्टक के दौरान हर दिन भगवान रघुनाथ के पास होली गायन की परंपरा निभाई जाती है.

उन्होंने बताया कि कुल्लू घाटी में वैरागी समुदाय को भगवान रघुनाथ ही लेकर आए थे. इसलिए आज भी इस समुदाय के लोग वृज और अवध की होली गाने की परंपरा निभा रहे हैं.

गुरु बाबा फौहरी महाराज की तपोस्थली पर आशीर्वाद
होली के दिन भी वैरागी समुदाय अपनी इस पारंपरिक परंपरा को निभाता है. वे अपने गुरु बाबा फौहरी महाराज की तपोस्थली झिड़ी में जाकर उनका आशीर्वाद लेते हैं. इससे इस परंपरा की आध्यात्मिक महत्ता और अधिक बढ़ जाती है.

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